ओटावा: कनाडा के पूर्व रक्षामंत्री हरजीत सिंह सज्जन ने अफगानिस्तान से निकलती कनाडाई सेना को अंतिम समय पर अफगान सिखों को निकालने को कहा था। उनका यह आदेश अब सवालों के घेरे में है, जिसपर कई कनाडाई सैन्य अधिकारी नाराज हैं। द ग्लोब एंड मेल की रिपोर्ट के मुताबिक सज्जन ने कनाडा के विशेष बलों को अगस्त 2021 में तालिबान के कब्जे के बाद लगभग 225 अफगान सिखों को बचाने का निर्देश दिया था। तीन सैन्य सूत्रों का कहना है कि कनाडाई नागरिकों और कनाडा से जुड़े अफगानों को निकालना उनकी प्राथमिकता थी। लेकिन इनके रेस्क्यू के संसाधन छीन लिए गए। जब यह आदेश दिया गया था, उसी के अगले महीने कनाडा में चुनाव होने थे।
सज्जन ने सेना को स्थान की जानकारी और सिखों से जुड़े अन्य विवरण साझा किए थे। यह जानकारी उन्हें कनाडाई सिख समूह से मिली थी, जो इन अफगान सिखों के संपर्क में था। सैन्य सूत्रों ने खतरनाक और निराशाजनक घंटों के बारे में बताया, क्योंकि रेसक्यू उड़ानें खत्म हो रही थीं। कनाडा और अन्य पश्चिमी देश अमेरिकी वापसी की समय सीमा तक अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित बाहर निकालने के लिए संघर्ष कर रहे थे। सूत्रों ने बताया कि अफगान सिख कनाडाई सेना के लिए ऑपरेशनल प्राथमिकता नहीं थे, क्योंकि उनका कनाडा से कोई संबंध नहीं था। सूत्रों का कहना है कि सज्जन के हस्तक्षेप ने कनाडा की प्राथमिकता सूची में कनाडाई और अन्य अफगानों के बचाव को प्रभावित किया।
अफगान सिखों को बाहर निकालने का दिया आदेश
एक सूत्र ने कहा, ‘जिस तरह हमें पहले इसके बारे में बताया गया उससे ऐसा लग रहा था कि अगर हम यह ऑपरेशन कर सके तो बहुत अच्छा लेकिन बाकी काम न छोड़ें। लेकिन एक या दो दिन बाद यह पक्के आदेश के रूप में हमारे पास आया। इसे हमारा नेतृत्व गुस्से में था। वे बहुत परेशान थे। वह गुस्से में थे कि अंतिम 24 घंटे पूरी तरह सिखों को बाहर निकालने के लिए समर्पित था। हम असफल रहे।’ सज्जन सिंह वर्तमान में ट्रूडो सरकार में आपातकालीन तैयारी मंत्री हैं। उन्होंने ऐसे किसी भी आरोपों से पल्ला झाड़ लिया है। उनका कहना है कि उन्होंने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया कि कनाडा सेना की मदद करने वालों लोगों की जगह सिखों को प्राथमिकता दी जाए।
भारत ने सिखों को रेसक्यू किया
कनाडाई सेना ने इन अफगान सिखों को रेसक्यू करने का प्रयास किया। लेकिन यह ऑपरेशन तब विफल हो गया, जब अफगान सिखों ने काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उन्हें सुरक्षित ले जाने के लिए कनाडाई सैनिकों के पहुंचने से पहले ही अपनी जगह छोड़ दी। रिपोर्ट में कहा गया कि महीनों बाद अफगान सिख भारत सरकार की ओर से रेसक्यू किए गए। अफगानिस्तान में 15 अगस्त को तालिबान के सत्ता में आने के तुरंत बाद कनाडाई नागरिकों, स्थायी निवासियों और ट्रांसलेटरों को निकालने के लिए भेजा गया। नारीवादी, मानवाधिकार कार्यकर्ता, अल्पसंख्यक और LGBTQ समूह के लोग भी रेसक्यू करने की प्राथमिकता सूची में तीसरे नंबर पर थे।