कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले के बाद राजस्थान सरकार यह पता लगाने जा रही है कि कहीं पिछली कांग्रेस सरकार ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत अनुचित तरीके से मुस्लिम जातियों को तो ओबीसी आरक्षण नहीं प्रदान किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले ने भाजपा के इस आरोप को बल प्रदान किया है कि आइएनडीआइए के घटक दल संविधान के विरुद्ध जाकर मजहब के आधार पर आरक्षण दे रहे हैं।
ममता बनर्जी सरकार की ओर से 2010 के बाद मुस्लिम जातियों को ओबीसी प्रमाणपत्र देने के निर्णय को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया। हालांकि, उसने अपने निर्णय में यह कहा है कि जिन्हें ओबीसी प्रमाणपत्र के जरिये नौकरियां मिल गई हैं, उन पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा, लेकिन उसके निर्णय से करीब पांच लाख लोग प्रभावित होंगे। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता सरकार के निर्णय को मनमाना बताते हुए खारिज किया है। उच्च न्यायालय के फैसले से नाराज ममता बनर्जी राजनीतिक कारणों से यह कह रही हैं कि वह इस फैसले को नहीं मानेंगी, लेकिन यदि उन्हें उच्च न्यायालय का फैसला स्वीकार नहीं तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना होगा। चूंकि यह निर्णय ममता की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का परिचायक है, इसलिए इस पर आश्चर्य नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने उन पर राजनीतिक हमला बोल दिया है।
मुस्लिम समाज की जातियों को ओबीसी प्रमाण पत्र देने के ममता सरकार के फैसले को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक ऐसे समय निरस्त किया है, जब राज्य में चुनाव हो रहे हैं। स्पष्ट है कि यह निर्णय ममता सरकार के लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका है। इसके पहले उन्हें ऐसा ही झटका कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले से भी लगा था, जिसमें उसने 25,000 शिक्षकों एवं स्कूली कर्मचारियों की भर्तियों को निरस्त कर दिया था। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ममता सरकार को थोड़ी राहत दे दी, लेकिन उच्च न्यायालय के उस फैसले ने उनके समक्ष एक राजनीतिक संकट तो खड़ा ही कर दिया। ममता सरकार को उच्च न्यायालय के कुछ और फैसलों से झटका लग चुका है। इसमें एक संदेशखाली में तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां शेख की ओर से जमीनों पर कब्जा और महिलाओं के प्रति अत्याचार से भी जुड़ा है। इस मामले में ममता सरकार को उच्च न्यायालय की फटकार सुननी पड़ी थी और सर्वोच्च न्यायालय की भी।
ममता सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप तभी से लग रहे हैं जबसे वह सत्ता में आई हैं। बंगाल की राजनीति में मुस्लिम तुष्टीकरण एक प्रमुख मुद्दा रहा है। भाजपा इस तुष्टीकरण को ही एक मुद्दा बनाकर ममता सरकार को घेरती रही है। बंगाल में पहले मुस्लिम समुदाय का तुष्टीकरण कांग्रेस की ओर से किया जाता था, फिर वामदलों की ओर से किया जाने लगा। वामदलों को परास्त कर सत्ता में आईं ममता बनर्जी भी यही काम करने लगीं। 1947 में जब मजहब के आधार पर भारत का विभाजन हुआ, तब पंजाब में तो दोनों छोर की आबादी का एक-दूसरे हिस्से में पलायन हुआ, लेकिन बंगाल में पूर्वी पाकिस्तान अर्थात आज के बांग्लादेश में रहने वाले हिंदू ही बड़ी संख्या में पलायन कर भारत आए। बंगाल में रहने वाले कुछ ही मुस्लिम नए देश में बसने गए।
बंगाल की सीमा बांग्लादेश से सटी है और सीमांत इलाके ऐसे हैं कि दोनों ओर आवाजाही कहीं अधिक आसान। इसके चलते बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी बंगाल में आकर बसते रहे। बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मुस्लिम बंगाल में भी आकर बसे और असम एवं त्रिपुरा में भी। आज इन तीनों राज्यों में बांग्लादेश से अवैध रूप से आए मुसलमानों की संख्या कितनी है, इसका अनुमान लगाना आसान नहीं। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि बांग्लादेश से आए मुसलमानों ने मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड और राशन कार्ड आदि बनवा लिए हैं। वे तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दलों के लिए एक बड़ा वोट बैंक बन गए हैं। बांग्लादेश से आई मुस्लिम आबादी ने बंगाल के साथ-साथ असम में सामाजिक तानेबाने को बदल दिया है और कई निर्वाचन क्षेत्रों में वे निर्णायक स्थिति में आ गए हैं। इसीलिए उनकी पहचान करने की मांग रह-रहकर होती रही है। मोदी सरकार ने इसी सिलसिले में नागरिकता कानून में संशोधन किया, ताकि बांग्लादेश से आए गैर-मुस्लिम लोगों को देश की नागरिकता दी जा सके।
चूंकि बांग्लादेश से आए मुस्लिम कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और वामदलों के लिए वोट बैंक बन गए हैं, इसीलिए इन दलों ने यह भ्रांति फैलाई कि नागरिकता संशोधन कानून का उद्देश्य भारत के मुसलमानों की नागरिकता छीनना है, जबकि यह कानून नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि नागरिकता देने का है। इसके बावजूद भाजपा विरोधी दल यह वादा करने में लगे हुए हैं कि यदि वे सत्ता में आए तो इस कानून को खत्म कर देंगे। चूंकि बंगाल में करीब 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है और बांग्लादेश से सटे कुछ जिले ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है, इसलिए स्वयं को सेक्युलर बताने वाले दल मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करते हैं। इसी राजनीति के तहत ममता सरकार ने मुस्लिम समाज को ओबीसी आरक्षण का अधिक से अधिक लाभ देने के लिए मनमाने तरीके से अनेक मुस्लिम जातियों को ओबीसी प्रमाण पत्र प्रदान कर दिए।
साफ है कि इससे हिंदू समाज की ओबीसी जातियों के हितों को चोट पहुंची। वोट बैंक की इसी राजनीति के चलते एक समय आंध्र प्रदेश में भी मुस्लिम समाज को आरक्षण प्रदान किया गया। यही काम कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने किया। उसने समस्त मुस्लिम समाज को पिछड़ा मानकर उसे ओबीसी आरक्षण दे दिया। इस पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने आपत्ति जताई और प्रधानमंत्री मोदी लगातार यह कह रहे हैं कि कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाला विपक्षी मोर्चा आइएनडीआइए मजहब के आधार पर आरक्षण देने का इरादा रखता है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले के बाद राजस्थान सरकार यह पता लगाने जा रही है कि कहीं पिछली कांग्रेस सरकार ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत अनुचित तरीके से मुस्लिम जातियों को तो ओबीसी आरक्षण नहीं प्रदान किया।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले ने भाजपा के इस आरोप को बल प्रदान किया है कि आइएनडीआइए के घटक दल संविधान के विरुद्ध जाकर मजहब के आधार पर आरक्षण दे रहे हैं। यह लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि भाजपा ने मजहब आधारित आरक्षण का मुद्दा उठाकर कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की जो घेरेबंदी की, उसका उसे कितना लाभ मिलेगा, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि कथित सेक्युलर दल मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करते हैं। मुस्लिम तुष्टीकरण की यह राजनीति भारतीयता के साथ साथ राष्ट्रीय हितों को चोट पहुंचाने और सीमा पार से अवैध घुसपैठ को बढ़ावा देने वाली भी है।