इंदौर। मध्य प्रदेश में कई दिनों से आक्रामक दिखने का प्रयास कर रही कांग्रेस अब शायद कुछ पल ठहरकर अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना चाहेगी। शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के गृह-गढ़ छिंदवाड़ा से पार्टी का प्रचार अभियान शुरू करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जैसे तेवर दिखाए, उससे कांग्रेस के कान खड़े हो गए हैं।
पार्टी को ऐसी उम्मीद नहीं थी। कांग्रेस का थिंकटैंक मानता था कि भाजपा अपना ट्रंप कार्ड यानी राम मंदिर मुद्दा, मिशन 2024 के लिए सहेजकर रखेगी, जबकि शाह ने अपने संबोधन में स्पष्ट कर दिया कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में विकास के अलावा राम मंदिर और हिंदुत्व भाजपा के मुख्य मुद्दे होंगे।
उल्लेखनीय है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि पर निर्माणाधीन भव्य राम मंदिर में रामलला की मूर्ति प्रतिष्ठा अगले वर्ष 22 जनवरी को प्रस्तावित है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद वहां मौजूद रहेंगे। इससे पहले पांच अगस्त, 2020 को राम मंदिर का भूमि पूजन भी मोदी ने ही किया था।
छिंदवाड़ा में शाह के भाषण पर गौर करें तो भाजपा की रणनीति साफ दिखती है। पार्टी दशकों तक राम मंदिर निर्माण की राह में बाधाएं खड़ी करने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए प्रधानमंत्री मोदी को मंदिर निर्माण और मूर्ति प्रतिष्ठा का पूरा श्रेय देगी। राहुल गांधी को रामलला का दर्शन करने अयोध्या आने का आमंत्रण देकर शाह पार्टी की आक्रामकता दर्शाते हैं। छिंदवाड़ा में शाह के मुखर होते ही अन्य नेताओं ने भी यह मुद्दा लपका।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शनिवार को मध्य प्रदेश में मौजूद प्रियंका गांधी वाड्रा से सवाल कर दिया कि उन्हें भगवान राम और राम मंदिर से क्या परेशानी है? राम इस देश के रोम-रोम में बसे हैं। उनके बिना इस देश का काम नहीं हो सकता।
भाजपा के इस रुख से हतप्रभ कांग्रेस प्रदेश में जगह-जगह लगे राम और राम मंदिर के होर्डिंग हटाने की मांग कर रही है। दमोह की सभा में प्रियंका वाड्रा ने कहा कि कुछ नेता धर्म की बात करते हैं, काम की नहीं। यद्यपि भाजपा को कांग्रेस की यह बेचैनी अपनी रणनीति के अनुकूल प्रतीत हो रही है। भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि कांग्रेस राम मंदिर और राम के मुद्दे पर जितना भड़केगी, भाजपा को उतना ही लाभ मिलेगा।
शिवराज सिंह ने कांग्रेस को चुनौती देने की मुद्रा में कहा कि भगवान राम के होर्डिंग किसी भी कीमत पर नहीं हटाए जाएंगे। दरअसल, कांग्रेस न चाहते हुए भी भाजपा के उस जाल में फंसती दिख रही है, जो पार्टी हिंदू मतों के ध्रुवीकरण के लिए बिछा रही है।
राम मंदिर के मुद्दे पर तल्ख प्रतिक्रिया देने से पहले कांग्रेस इजरायल-हमास विवाद में भी देश के अधिकृत स्टैंड से अलग जाकर अपने कार्यकर्ताओं को असहज कर चुकी है। इसी मुद्दे पर गत दिवस यूएन में संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर भारत के अनुपस्थित रहने पर भी प्रियंका गांधी ने कहा था कि वह इससे स्तब्ध हैं। भाजपा इस विवाद में कांग्रेस के स्टैंड को उसकी मुस्लिम वोटबैंक को खुश करने की योजना के रूप में प्रचारित कर रही है।
भाजपा नेतृत्व का मानना है कि हिंदुत्व और राम मंदिर के मुद्दे कांग्रेस की जाति-आधारित वोटबैंक रणनीति की हवा निकाल देंगे। कांग्रेस मुस्लिम वोटबैंक के प्रति जितना लगाव दर्शाएगी, भाजपा के पक्ष में गैर मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण उतना ही तीव्र होगा।
इस रणनीति को भरपूर धारदार बनाने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मध्य प्रदेश के चुनाव अभियान में प्रमुख प्रचारक के रूप में उतारने की योजना बनाई जा रही है। उधर, कांग्रेस की कठिनाई यह है कि उसके पास भाजपा के हिंदुत्व कार्ड की काट के सीमित विकल्प हैं।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर कांग्रेस का स्टैंड जाने-अनजाने पार्टी के मुस्लिम-परस्त होने की धारणा बनाता रहता है, यद्यपि कमल नाथ साफ्ट हिंदुत्व की लाइन पर चलते हैं, लेकिन उनकी ऐसी हर कोशिश पर दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मौका तलाश-तलाशकर पानी फेरते रहते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि चुनाव अभियान थोड़ा आगे बढ़ते ही भाजपा दिग्विजय सिंह के ऐसे कई नए-पुराने बयान मतदाताओं को याद दिलाए।