माइक्रोचिप के बिजनेस के लिए सियाचिन को क्यों हड़पना चाहते हैं चीन-पाकिस्तान! आखिर ऐसा क्या है वहां?

दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र कहा जाने वाला इलाका सियाचिन ग्लेशियर साल 1984 से ही विवादों में रहा है. इस इलाके पर भारतीय सेना ने 1984 में कब्जा कर लिया था. जिसके बाद से ही इस ग्लेशियर पर पाकिस्तान और भारत की सेना एक दूसरे के आमने-सामने है. वहीं चीन भी समय-समय पर इस क्षेत्र में अपनी दिलचस्पी दिखाता रहा है. 

ऐसे में एक सवाल उठता है कि आखिर इस ग्लेशियर को चीन और पाकिस्तान क्यों हड़पना चाहता है, क्या ये सिर्फ जमीन का मामला है या इसके पीछे कोई बहुत बड़ा कारोबार छुपा है. इस रिपोर्ट में समझते हैं 

चिप बनाने में दबदबा चाहता है चीन 

दरअसल दो साल पहले यानी अक्टूबर 2022 में दुनियाभर की तमाम कार निर्माता कंपनियों के सामने एक समस्या खड़ी हो गई थी. जिसके बाद स्वीडन की वोलवो कंपनी ने एक हफ्ते के लिए अपनी एक फैक्ट्री को बंद करने का ऐलान कर दिया. तो वहीं जापान की टोयोटा कंपनी को अपने कारों का मैन्यूफैक्चर घटाना पड़ा था. वजह थी, माइक्रोचिप की किल्लत. 

साल 2020 के बाद से ही दुनियाभर में अचानक माइक्रोचिप की डिमांड बढ़ने लगी. कोविड महामारी के दौरान इसकी मांग इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि उसे पूरा कर पाना चुनौतीपूर्ण हो गया था. 

वर्तमान में माइक्रोचिप हर रोज इस्तेमाल होने वाले हर डिजिटल गैजेट या मशीन में लगाई जाती है. इन गैजेट्स में कंप्यूटर से लेकर स्मार्टफोन और हवाई जहाज से लेकर ड्रोन तक शामिल है. कार से लेकर चिकित्सा उपकरण में भी माइक्रोचिप का इस्तेमाल किया जाता है. 

एक कार में तो कम से कम 1500 माइक्रो चिप्स लगे होते हैं, इसके अलावा हम जिस स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं उसमें कम-से-कम एक दर्जन चिप लगे होते हैं. एक्सपर्ट्स की मानें तो चिप मशीनों के लिए तेल की तरह होते हैं. खास बात ये है कि तेल उद्योग की तरह ही सेमी-कंडक्टर उद्योग पर भी मुट्ठी भर देशों का दबदबा है.

सेमीकंडक्टर का हिमालय कनेक्शन

सेमीकंडक्टर के निर्माण में उपकरण को ठंडा करने से लेकर वेफर सतह की सफाई तक, अलग अलग उद्देश्यों के लिए बड़ी मात्रा में पानी की खपत होती है. चिप निर्माण के शुरुआती चरणों में वेफर की सफाई, धुलाई और सतह कंडीशनिंग के लिए बार-बार पानी का इस्तेमाल किया जाता है. खास बात ये है कि ये पानी सामान्य पीने के पानी की तुलना में हजारों गुना अधिक स्वच्छ होना चाहिए.

वहीं चीन की सभी नदियां प्रदूषित हैं, और हिमालय का ग्लेशियर भविष्य में शुद्ध पानी का एकमात्र स्रोत हैं. यही कारण है कि चीन जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए इतना बेचैन है. इन क्षेत्रों की झीलें शुद्ध जल के प्रचुर स्रोत हैं.

ताइवान माइक्रोचिप बनाने वाला प्रमुख देश 

वर्तमान में ताइवान माइक्रोचिप बनाने वाला एक सबसे प्रमुख देश है. अब चीन और अमेरिका खुद इस चिप को अपने देश में बनाने के लिए अरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं. 

इसके अलावा दुनियाभर में पुराने और सामान्य माइक्रोचिप के बाजार का 40 प्रतिशत हिस्सा ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी यानि TSMC के पास है. टीएसएमएस की एपल कंपनी के साथ भी भागीदारी है. पिछले साल 2023 में इस कंपनी (TSMC) ने पांच हजार से ज्यादा कंपनियों के लिए बारह हजार से ज्यादा तरह के उत्पाद बनाए हैं.

चीन और पाकिस्तान सियाचिन पर क्यों करना चाहता है कब्जा?

अब चीन को माइक्रोचिप का हब बनने के लिए सियाचिन की जरूरत है. इसे ऐसे समझिये कि इस ग्लेशियर के 10 करोड़ एकड़ जमीन में ताजे पानी के स्रोत हैं. जिसकी चीन और पाकिस्तान को बेहद जरूरत है. पाकिस्तान इस पानी का इस्तेमाल अधिक बांधों और पनबिजली (बिजली) के लिए करना चाहता है जबकि चीन को माइक्रोचिप दिग्गज बनने के लिए इसकी जरूरत है. 

चीन ताइवान पर भी चाहता है अपना प्रभाव 

वहीं चीन ताइवान पर भी अपना प्रभाव चाहता है. ताइवान पूर्वी एशिया का एक द्वीप है जो उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर में ईस्ट और दक्षिण चीन सागर के जंक्शन पर बसा हुआ है. ताइवान के उत्तर और उत्तर-पूर्व में पूर्वी चीन सागर है. इसी द्वीप के उत्तर-पूर्व में रयूकू द्वीप है जो कि जापान का दक्षिणी भाग है. 

अब क्योंकि ताइवान दुनिया में सबसे बड़ा माइक्रोचिप का प्रोडक्शन करने वाला देश है. इसलिए चीन दावा करता रहा है कि ताइवान किसी समय में उसका हिस्सा हुआ करता था, इसलिए यह द्वीप आज भी चीन का हिस्सा माना जाएगा. वहीं दूसरी तरफ ताइवान पर चीन से ज्यादा जापान का प्रभाव माना जाता है. 

कहां है सियाचिन ग्लेशियर 

सियाचिन ग्लेशियर हिमालय की पूर्वी काराकोरम श्रृंखला में स्थित है. यह ग्लेशियर समुद्र तल से लगभग 5,000 मीटर यानी 16,400 फीट से अधिक की ऊंचाई पर है. यह दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र भी है. इस ग्लेशियर की लंबाई लगभग 76 किलोमीटर यानी 47 मील और चौड़ाई 2.8 किलोमीटर यानी 1.7 मील है.

इस इलाके पर नियंत्रण को लेकर साल 1984 के बाद से ही भारत और पाकिस्तान संघर्ष में उलझे हुए हैं. सियाचिन भारत के लिए काफी रणनीतिक महत्व रखता है, जो नियंत्रण रेखा (LoC) पर गतिविधियों की निगरानी के लिए एक सुविधाजनक स्थान के रूप में कार्य करता है. इस इलाके में दोनों ही देश (भारत-पाकिस्तान) महत्वपूर्ण सैन्य उपस्थिति बनाए रखते हैं. 

भारत ने भी अपना लक्ष्य निर्धारित किया 

दुनिया में अमेरिका, चीन जैसे कई देशों ने सेमीकंडक्टर चिप बनाने की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है. वहीं भारत भी सेमीकंडक्टर प्लांट की नींव रख चुका है. 

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव के एक बयान के अनुसार, भारत आने वाले 5 सालों में दुनिया का 5वां सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर बनाने वाला देश की लिस्ट में शुमार हो जाएगा.

आपको बता दें सेमीकंडक्टर बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां चीन के विकल्प के तौर पर अन्य देश की तलाश में हैं. ऐसे में भारत के लिए ये बड़ा मौका होगा. वहीं चीन और अमेरिका के बीच भी विवाद चल रहा है, जिसका फायदा भारत को मिल सकता है. 

पहली बार किसने बनाई थी माइक्रोचिप 

माइक्रोचिप को सबसे पहले साल 1950 के दशक में अमेरिका की एक कंपनी टेक्सस इंस्ट्रुमेंट्स के एक टेक इंजीनियर जैक क्यूबी ने बनाई थी. उस वक्त इस चिप का इस्तेमाल पॉकेट कैलकुलेटर में किया जाता था. धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में भी होने लगा. 

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