भारत के अंदरूनी मामलों पर विदेशी बयान के पीछे साजिश की बू, भारत की तीखी प्रतिक्रिया दूसरे देशों को भी संकेत

नई दिल्ली। जर्मनी, अमेरिका और फिर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से एक के बाद एक जिस तरह से भारत की लोकतांत्रिक व न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाये गये हैं उसे भारत एक सामान्य प्रक्रिया के तौर पर नहीं ले रहा है। इस प्रकरण पर विदेश मंत्रालय की सोच है कि समय समय पर भारत को कभी मानवाधिकार, कभी लोकतांत्रिक व्यवस्था तो कभी आर्थिक सुधार के मुद्दे पर घेरने वाली शक्तियां ही इसका भी हिस्सा हैं। यही वजह है कि जैसे ही विदेशी सरकारों ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी या मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बैंक खातों को आयकर विभाग द्वारा जब्त करने पर सवाल उठाए तो भारत ने जवाबी कड़ी प्रतिक्रिया दी है।

सख्त संदेश देने में कोई कोताही नहीं

खास बात यह है कि सवाल उठाने में अग्रणी अमेरिका और जर्मनी दोनों देश भारत के करीबी रणनीतिक साझेदार हैं जिनसे द्विपक्षीय रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे हैं। फिर भी भारत ने इन्हें सख्त संदेश देने में कोई कोताही नहीं की है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि जर्मनी व अमेरिका के विदेश मंत्रालयों के प्रवक्ताओं ने जो प्रतिक्रिया दी थी वह एक प्रश्न के उत्तर में था। इसके बावजूद जिस तरह से भारत की न्यायिक प्रणाली पर संदेह जताया गया, उसको काफी गंभीरता से लिया गया है।

विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया

यही वजह है कि विदेश मंत्रालय ने जर्मनी और अमेरिका के दूतावास के वरिष्ठ अधिकारियों को बुला कर अपनी आपत्ति से अवगत कराया। अगर भारत की किसी कूटनीति के संदर्भ में यह बात कही गई होती तो विदेश मंत्रालय भी एक प्रतिक्रिया जता कर मामले को रफा-दफा कर देता लेकिन न्यायिक प्रणाली पर सवाल उठाने या लोकतांत्रिक प्रक्रिया को निशाना बनाने पर मामला गंभीर हो जाता है।

सवाल उठाने के पीछे की साजिश

सनद रहे कि अमेरिका के विदेश मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र के सामान्य प्रेस कांफ्रेंस में केजरीवाल की गिरफ्तारी और कांग्रेस के बैंक खाते जब्त किये जाने से जुड़ा सवाल वाशिंगटन स्थित बांग्लादेश मूल के एक ही पत्रकार ने पूछे हैं।कई देशों की तरफ से एक ही सवाल उठाने के पीछे कोई साजिश तो नहीं इसके जवाब में विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि कुछ शक्तियां भारत को किसी न किसी मामले में घेरने की कोशिश करती हैं। कभी मीडिया में आलेख के जरिए तो कभी सरकारी या गैर-सरकारी एजेंसियों की रिपोर्ट के जरिए ऐसा किया जाता रहा है। यह पुरानी परंपरा है। भारत का कड़ा जवाब इन्हें नागवार गुजरता है।

भारत ने मजूबती से निभाए विदेशी रिश्ते

जर्मनी और अमेरिका की प्रतिक्रियाओं पर इनके राजनयिकों को तलब करने का एक मकसद दूसरे देशों को इसे दूर रहने का संदेश देना भी है। विदेश मंत्रालय के अधिकारी यह मानते हैं कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठाने को लेकर हुई तीखी प्रतिक्रियाओं के बावजूद इन देशों के साथ भारत के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि अभी तक जिन देशों की सरकारों ने मुद्दे को उठाया है उनसे लगातार कई मोर्चों पर विमर्श चल रहा है। कुछ मुद्दों पर निजी तौर पर कूटनीतिक चर्चा होती है।

विदेश को भारत का सख्त संदेश

यह पहला मौका है जब भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की तरफ से सवाल उठाये गये हैं। इसके पहले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तार पर जर्मनी और अमेरिका दोनों ने ही चिंता प्रकट करते हुए उम्मीद जताई थी कि भारत में आप पार्टी के मुखिया के साथ स्वतंत्र व पारदर्शी तरीके से न्याय होगा। इन देशों की सरकारों के अलावा अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया के कई समाचार पत्रों में भी हाल के दिनों में भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर कई तरह के सवाल उठाते हुए आलेख प्रकाशित किए हैं।

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