‘जिनपिंग 16 जून नहीं भूल पाएंगे, भारत ने दिखाया अब बहुत हो चुका’; जनरल नरवणे गलवां और CDS पद पर भी बोले

 

सेवानिवृत्त सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे का कार्यकाल चुनौतियों से भरा रहा। उन्होंने भारतीय सेना की क्षमता, पूर्वी लद्दाख की गलवां घाटी में चीनी सैनिकों- पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के साथ हुई हिंसक झड़प और देश में सेना के सबसे ऊंचे ओहदे- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) का पद न मिलने जैसे कई कठिन सवालों पर बेबाकी से बयान दिया है। सेना प्रमुख ने सीडीएस का पद न मिलने के संबंध में कहा कि रक्षा और सैन्य मामलों में सरकार के विवेक और समझ पर सवाल खड़ा करना उन्हें मुनासिब नहीं लगता।

दरअसल, करीब साढ़े तीन साल पहले  पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना और चीनी सैनिकों की हिंसक झड़प को गलवां घाटी हिंसा के नाम से भी जाना जाता है। चीन की पीएलए ने आक्रामकता दिखाते हुए भारत को उकसाने की हिमाकत की थी। भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया था। सेना के पराक्रम से जुड़ी इन घटनाओं पर पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा, लद्दाख की घटना के बाद भारतीय सेना ने दुनिया को दिखाया कि अब बहुत हो चुका। उकसावे की कार्रवाई पर देश चुप नहीं बैठेगा। किसी भी नापाक मंसूबे का माकूल जवाब दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि चीन ने सलामी स्लाइसिंग टैक्टिक्स (salami-slicing) अपनाकर कई देशों पर धौंस जमाई है। भारत के खिलाफ भी उसने यही नीति अपनाई, लेकिन भारतीय सेना ने दिखाया कि अब बहुत हो चुका। पड़ोसी देशों को कमजोर समझने की गलती भारी पड़ सकती है। दरअसल, इस नीति के तहत किसी कमजोर देश के भूभाग पर कब्जा करने के लिए छोटी-छोटी लड़ाइयां छेड़ी जाती है। इनका जवाब देना काफी जटिल होता है, क्योंकि किस स्तर की सैन्य कार्रवाई की जाए, यह समझना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है।

पूर्व सेना प्रमुख नरवणे के मुताबिक चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कूटनीति भी (wolf-warrior diplomacy) विवादों में रही है। टकराव और आक्रामकता दिखाने की इस नीति के कारण चीन कई छोटे पड़ोसियों के खिलाफ धौंस जमा चुका है। बता दें कि भारतीय सेना में अपने लंबे कार्यकाल को लेकर जनरल नरवणे ने संस्मरण लिखा है। ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ (Four Stars of Destiny) में पूर्व सेना प्रमुख ने बताया है कि गलवां घाटी की हिंसा के बाद भारतीय सेना ने किस तरह की कार्रवाई की। कैसे 16 जून, 2020 को चीन की आक्रामकता का मुंहतोड़ जवाब दिया गया। दो दशकों में पहली बार चीनी सेना का इतना बड़ा नुकसान हुआ। भारतीय शूरवीरों को उकसाने और लद्दाख में तैनात जवानों से भिड़ने वाले पीएलए के सैनिक बड़ी संख्या में मारे गए।

जनरल नरवणे ने अपने संस्मरण में बताया है कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को लेकर जारी विवाद के मद्देनजर गलवां घाटी हिंसा सैन्य तैयारियों को पुख्ता करने के नजरिए से काफी अहम रही। उन्होंने कहा कि 15-16 जून की दरम्यानी रात में हुई हिंसा भले ही उनके करियर का सबसे दुखद अवसर रहा, लेकिन 16 जून को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी कभी भुला नहीं सकेंगे। कम से कम 20 साल में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में चीनी सैनिक मारे गए। बता दें कि जब गलवां घाटी में चीनी सैनिकों को मार गिराया गया उस दिन चीनी राष्ट्रपति का जन्मदिन (16 जून) होता है।

बता दें कि नरवणे 31 दिसंबर, 2019 से 30 अप्रैल, 2022 तक भारतीय सेना प्रमुख रहे। उनके कार्यकाल में चीनी आक्रामकता सबसे चर्चित घटनाओं में एक रही। उन्होंने अपने संस्मरण में सीडीएस का पद न मिलने पर भी लिखा है। नरवणे ने कहा, जब सरकार ने उन्हें सेना प्रमुख नियुक्त किया, उस समय भी उन्होंने सरकार के विवेक पर सवाल नहीं खड़े किए तो सीडीएस नियुक्ति पर ऐसा क्यों करना? पूर्व सेना प्रमुख के अनुसार, उनसे अक्सर यह सवाल पूछा जाता है और उनका जवाब भी हमेशा एक ही होता है। नरवणे ने पुस्तक के अंतिम अध्याय ‘ओल्ड सोल्जर्स नेवर डाई’ में इस संबंध में अपनी टिप्पणी में बेबाकी से कहा, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। सबसे अहम है कि आपकी विदाई किस प्रतिष्ठा के साथ हुई।

बता दें कि पिछले साल सितंबर में, पूर्वी सैन्य कमांडर और सैन्य संचालन महानिदेशक जनरल अनिल चौहान को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त किया गया था। हेलीकॉप्टर दुर्घटना में भारत के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत की शहादत के बाद नौ महीने से अधिक समय तक यह पद खाली रहा था। वर्तमान सीडीएस जनरल चौहान मई, 2021 में लेफ्टिनेंट जनरल पद से सेवानिवृत्त हुए थे।

15 जून 2020 को क्या हुआ था? 
साढ़े तीन साल से अधिक पुरानी इस घटना में एक मई, 2020 को दोनों देशों के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे पर झड़प हो गई थी। उस झड़प में दोनों तरफ के कई सैनिक घायल हो गए थे। यहीं से तनाव की स्थिति बढ़ गई थी। इसके बाद 15 जून की रात गलवां घाटी पर भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने आ गए। 

बताया जाता है कि चीनी सैनिक घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे। भारतीय जवानों ने उन्हें रोका तो वह हिंसा पर उतारू हो गए। इसके बाद विवाद काफी बढ़ गया। इस झड़प में दोनों ओर से खूब पत्थर, रॉड चले थे। इसमें 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे, जबकि चीन के 38 से ज्यादा जवान मारे गए थे। इनमें कई चीनी जवान नदी में बह गए थे। हालांकि, चीन ने केवल चार जवानों के मौत की पुष्टि की। अमेरिका की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, इस झड़प में 45 से ज्यादा चीनी जवान मारे गए थे।

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