कैसे बनाए जाते हैं नागा, महाकुंभ के बाद कहां रहते हैं; नागा संत ने सबकुछ बताया

नागा साधुओं का नाम सुनकर ही अक्सर आम श्रद्धालुओं के मन में थोड़ा सा अनाजाना भय समा जाता है। नागाओं से जुड़े तमाम सवालों को लेकर पहुंचा महाकुंभ में। हमने यहां बात की जूना अखाड़े के नागा संन्यासी, संत अर्जुन पुरी से। बातचीत में हमने उनसे नागाओं से जुड़े विभिन्न भ्रांतियों को लेकर कई सवाल पूछे। इस दौरान नागा संन्यासी ने भी खूब खुलकर बात की और तमाम भ्रमों से परदे हटाए। उन्होंने हमें बताया कि आखिर कैसे बनाए जाते हैं नागा संत? कितनी कठिन होती है यह प्रक्रिया और महाकुंभ के बाद कहां रहते हैं नागा संन्यासी।

कब बने नागा संन्यासी?

नागा संत अर्जुन पुरी से पहले हमने उनके बारे में पूछा। हमने पूछा कि आपने कब संन्यास लिया। इसके जवाब में नागा संत अर्जुन पुरी ने बताया कि वह पांच वर्ष की अवस्था से नागा संन्यासी हैं। जब बोध हुआ तो संतों की शरण में थे। उन्होंने बताया कि ज्ञान, भक्ति, वैराग्य के द्वारा मेरा पालन-पोषण हुआ। अब तक का पूरा जीवन संत जीवन ही रहा है। नागा संत ने बताया कि उन्हें जूना अखाड़े की तरफ से धर्म प्रचार के लिए पूरी दुनिया में भेजा जाता है। भारत समेत अन्य देशों में सनातनी लोगों का प्रचार-प्रसार करना मुख्य उद्धेश्य है।

क्या करते हैं नागा संन्यासी

इस सवाल के जवाब में नागा संत अर्जुन पुरी ने बताया कि हम सनातन के सिपाही हैं। यह सनातन की फौज है। सनातन को विस्तारित करने, इसे सशक्त बनाने और इसका ध्वज पूरे विश्व में लहराने के लिए, नागा संतों की फौज बनाई जाती है। फिर उनको गुप्तचरों की तरह पूरे देश और विदेश में भेज दिया जाता है। वहां जाने के बाद हम लोग सनातनी धर्म-संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं।

नागा संन्यासी बनाने की प्रक्रिया

संत अर्जुन पुरी ने बताया कि नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन है। सभी को नागा संन्यास नहीं दिया जाता। सिर्फ उन्हीं को दिया जाता है जो बचपन से नागा संन्यासियों की शरण में आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि इसके बाद उन्हें कई तरह की कठोर साधनाओं, तपस्याओं, ध्यान-योग और पूजा-पाठ से गुजरना पड़ता है। बचपन से ही उनका लिंग मर्दन किया जाता है। नागा संन्यास में दिगंबर और श्री दिगंबर बनने के लिए बचपन से ही इसकी दीक्षा ली जाती है।

नागाओं को ठंड क्यों नहीं लगती?

ठंड नहीं लगने के पीछे भी नागा संन्यासी ने वजह बताई। उन्होंने कहाकि हम मंत्र से अभिमंत्रित करके भभूति को लगाते हैं। यह हमारे लिए विशेष कपड़े के रूप में काम करता है। इसके अलावा हम अपना जीवन नियम-संयम से जीते हैं। हम कई तरह के भोगों से दूर रहते हैं। इसलिए शरीर में ऊर्जा और अग्नि लगातार बनी रहती है। हमारा शरीर अंदर से गर्म और मजबूत बना रहता है। इससे हम मौसम की मार से बचे रहते हैं।

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *