इंदिरा का अन्याय और मोदी की भरपाई: CJI बनने जा रहे जस्टिस संजीव खन्ना का आपातकाल कनेक्शन जानिए

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजीव खन्ना भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश होंगे। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की सिफारिश को नरेंद्र मोदी सरकार ने स्वीकार कर लिया है। जस्टिस खन्ना के सीजेआई पद की शपथ लेते ही इंदिरा गांधी सरकार में हुआ एक ऐतिहासिक अन्याय की भरपाई हो जाएगी। वह अन्याय 48 वर्ष पहले 1976 में हुआ था जब इंदिरा गांधी सरकार ने जस्टिस संजीव खन्ना के चाचा जस्टिस हंस राज खन्ना के साथ अन्याय करते हुए उनके जूनियर जस्टिस मिर्जा हमीदुल्लाह बेग (जस्टिस एमएच बेग) को देश का 15वां मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया था।

जस्टिस हंस राज खन्ना का वो ऐतिहासिक निर्णय

दरअसल, जस्टिस एचआर खन्ना ने आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार के खिलाफ ऐतिहासिक फैसला दिया था। इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल लागू करने की घोषणा की थी। इंदिरा ने तब संविधान के अनुच्छेद 359(1) का इस्तेमाल करते हुए नागरिकों के सारे अधिकार छीन लिए थे। हजारों लोगों को आंतरिक सुरक्षा प्रबंधन कानून (MISA) के तहत जेल में डाल दिया गया था। तब विभिन्न अदालतों में मुकदमे दर्ज होने लगे थे और अलग-अलग कोर्ट से अलग-अलग फैसले आने लगे थे। कई उच्च न्यायालयों ने रिट याचिकाओं के जरिए मीसा के तहत बंद कैदियों को रिहा करना शुरू कर दिया।

बंदी प्रत्यक्षीकरण का वो ऐतिहासिक मामला

इस दौरान एक महत्वपूर्ण मामला सामने आया-एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला का जिसे बंदी प्रत्यक्षीकरण केस 1976 (Habeas Corpus Case 1976) के नाम से भी जाना जाता है। यह केस भारतीय न्यायिक इतिहास के मील का पत्थर है। इस पर इंदिरा सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट को ऐतिहासिक निर्णय देना था कि क्या सरकार ऐसे मनमाने फैसले ले सकती है? क्या अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है? क्या रिट याचिका दायर करने का अधिकार भी निलंबित किया जा सकता है?

आपातकाल में बनी संवैधानिक पीठ के जजों को जानिए

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए पांच जजों की एक संवैधानिक पीठ बनाई। इस पीठ में तत्कालीन चीफ जस्टिस एएन रे, जस्टिस एमएच बेग, जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़, जस्टिस पीएन भवगती और जस्टिस एचआर खन्ना शामिल थे। इंदिरा गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 359(1) का हवाला देकर दावा किया कि आपातकाल में राज्य किसी भी मौलिक अधिकार को निलंबित कर सकता है, भले ही वह अनुच्छेद 21 के तहत मिला गैरकानूनी हिरासत के खिलाफ अधिकार ही क्यों न हो। सरकार ने यहां तक कहा कि सैद्धांतिक रूप से आपातकाल के दौरान राज्य जीवन भी ले सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ पर इंदिरा सरकार के पक्ष में फैसला देने का भारी दबाव था। पांच में से चार जजों ने मान लिया कि सरकार किसी भी मौलिक अधिकार को निलंबित कर सकती है और लोग सवाल नहीं उठा सकते हैं। केवल एक जज ने कड़ा विरोध जताया- वे जज थे जस्टिस एचार खन्ना, जस्टिस संजीव खन्ना के चाचा।

सीजेआई का पद छोड़, निष्ठा और नैतिकता का दिया साथ

जस्टिस एचआर खन्ना अगले मुख्य न्यायाधीश बनने वाले थे। ऑथर सिद्धार्थ इचेलियन ने सोशल मीडिया एक्स पर अपने एक पोस्ट में बताया है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में अपना फैसला सुनाने से पहले एचआर खन्ना ने अपनी बहन को लिखा था। इस पत्र में जस्टिस खन्ना ने लिखा था, ‘मैंने अपना फैसला तैयार कर लिया है, जिसकी कीमत मुझे भारत के मुख्य न्यायाधीश पद से चुकानी पड़ेगी।’ जस्टिस खन्ना सही थे। फैसला सुनाने के बाद खन्ना के जूनियर जज एमएच बेग को भारत का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया। एमएच बेग ने न केवल हैबियस कॉर्पस मामले में सरकार का साथ दिया था, बल्कि उन्होंने यह कहकर भी हद पार कर दी कि ‘राज्य मां की तरह बंदियों की देखभाल कर रहा है’।

बेग को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के बाद जस्टिस एचआर खन्ना ने इस्तीफा दे दिया। हैबियस कॉर्पस मामले में उन्होंने कड़ी चेतावनी दी थी कि लोगों के सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता पर सरकार का पक्ष लेना गलत है। उनके अनुसार, ‘…बिना मुकदमे के हिरासत में लेना उन सभी के लिए एक अभिशाप है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता से प्यार करते हैं’।

ईमानदारी की मिसाल थे जस्टिस खन्ना

1977 में जब इंदिरा सरकार गिर गई तो नई जनता पार्टी सरकार ने जस्टिस खन्ना से आपातकाल में हुए अन्यायों की जांच के लिए आयोग का नेतृत्व करने के लिए कहा। जस्टिस खन्ना ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी के खिलाफ उनकी छवि आयोग के अध्यक्ष के रूप में ठीक नहीं रहेगी । उन्हें कई अन्य पदों की पेशकश की गई लेकिन उन्होंने केवल कानून आयोग का नेतृत्व स्वीकार किया क्योंकि उनका मानना था कि वहां उनकी विशेषज्ञता काम आ सकती है।

जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के पुत्र डीवाई चंद्रचूड़, जो वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश हैं, ने स्वीकार किया कि उनके पिता ने हैबियस कॉर्पस मामले में गलती की थी। जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने भी सरकार का पक्ष लिया था। 2017 के पुत्तस्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अंततः हैबियस कॉर्पस केस के फैसले को पलट दिया और राज्य के दमन पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीने के अधिकार को वरीयता दी। एक ऐतिहासिक अन्याय को उलटने में 41 साल लग गए।

48 साल बाद ऐतिहासिक अन्याय की भरपाई

इस प्रकार, मुख्य न्यायाधीश का पद, जिसके हकदार जस्टिस एचआर खन्ना 48 साल पहले थे, उनके भतीजे जस्टिस संजीव खन्ना ग्रहण करेंगे। यह प्राकृतिक न्याय जैसा लगता है। इतने शक्तिशाली पद को स्वेच्छा से त्यागने और ईमानदारी के साथ खड़े रहने के लिए बहुत साहस की आवश्यकता होती है। जस्टिस एचआर खन्ना का 2008 में निधन हो गया। जस्टिस एचआर खन्ना के भाई और जस्टिस संजीव खन्ना के पिता जस्टिस देवराज खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे।

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