झांसी में यादव समाज अब नहीं करेगा तेरहवीं भोज:फैसला नहीं मानने वालों का बहिष्कार होगा, ब्राह्मण और कन्याओं को कराएंगे भोजन

झांसी में यादव समाज अब तेरहवीं यानी मृत्युभोज नहीं करेगा। न तो समाज के लोगों को बुलाएंगे और न ही कहीं जाएंगे। यही नहीं, अगर कोई फैसले के खिलाफ जाएगा, तो उसका समाज से बहिष्कार किया जाएगा।

यादव परिवार में किसी की मौत होने पर सिर्फ ब्राह्मणों और कन्याओं को भोजन कराएगा। यह फैसला शनिवार को मोठ कस्बे में आयोजित यादव समाज की मीटिंग में लिया गया। यह फैसला अभी मोठ कस्बे के यादव समाज पर ही लागू होगा।

हालांकि, मीटिंग में यह भी तय किया गया कि मृत्युभोज नहीं कराने के फैसले का प्रचार-प्रसार किया जाएगा। ताकि प्रेरणा लेकर बाकी गांव के लोग भी इसे लागू करें। इससे पहले झांसी के ही रेवन गांव के लोग भी मृत्युभोज का बहिष्कार कर चुके हैं।

यह कुरीति है, इसलिए बंद करना जरूरी मोठ झांसी मुख्यालय से करीब 40 किमी है। यह इलाका यादव बहुल है। शनिवार शाम को यहां सन्नी विवाह घर में यादव समाज की मीटिंग हुई। अध्यक्षता रिटायर टीचर रघुवीर सिंह यादव ने की। उन्होंने बताया कि समाज को कुरीतियों से बचाने के लिए मृत्युभोज को बंद करने का प्रस्ताव रखा गया। सभी ने सर्वसम्मति से पारित किया।

उन्होंने बताया कि लोगों ने शपथ ली है कि वे अब से मृत्युभोज का आयोजन नहीं करेंगे। परिवार में मौत होने पर सिर्फ ब्राह्मणों और कन्याओं को खाना खिलाएंगे। इसके अलावा, रिश्तेदार और परिवार को बुला सकते हैं। तेरहवीं करके समाज या अन्य समाज के लोगों को खाना नहीं खिला सकेंगे।

कोई तेरहवीं कार्ड भी नहीं छपवाएगा

रघुवीर सिंह यादव ने बताया- मीटिंग में निर्णय लिया गया कि मौत के बाद कोई शोक-पत्र यानी तेरहवीं का कार्ड भी नहीं छपाएगा। तेरहवीं करके न किसी को बुलाना है और न ही किसी की तेरहवीं में जाना है। पहले तो परिवार का सदस्य हमेशा के लिए जुदा हो जाता है। इसके बाद मृत्युभोज के नाम पर फिजूल खर्च होता है। समाज को उससे बचाने के लिए मोंठ में ये फैसला लिया गया। इसे देखकर अन्य गांवों में भी जागरूकता आएगी। मीटिंग में एक समिति भी बनाई गई। जो नजर रखेगी और प्रचार प्रसार भी करेगी।

लोग जश्न की तरह तेरहवीं करने लगे थे पूर्व चेयरमैन अनुरुद्व सिंह यादव ने बताया-झांसी में मौत के बाद धूमधाम से तेरहवीं करने का एक क्रेज-सा चल गया है। इसमें कई प्रकार की मिठाई, कई तरह की सब्जियां, खीर जैसे पकवान बनवाने में लोगों के लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं। जो बहुत गलत है। इस तरह की तेरहवीं का किसी भी वेद-पुराण में उल्लेख नहीं है। आत्मा की शांति के लिए पूजा-पाठ करके ब्राह्मण भोज और कन्या भोज करना चाहिए। गरीबों को खाना खिलाएं।

यादव समाज के 200 परिवार प्रमोद कुमार यादव ने बताया-मोठ कस्बे में यादव समाज के 200 परिवार रहते हैं। अभी इन परिवारों ने मृत्युभोज का बहिष्कार किया है। ये मृत्युभोज नहीं करेंगे और न ही पूरे झांसी में किसी के मृत्युभोज में शामिल होंगे। अब आगे समाज के प्रबुद्ध लोग यादव बाहुल्य गांवों में जाकर प्रचार कर मुत्युभोज बंद करने के लिए प्रेरित करेंगे। यादव समाज के अलावा अन्य समाजों को भी प्रेरित करेंगे, ताकि वे भी इस कुरीति को बंद करें। झांसी में लगभग 100 गांव यादव बाहुल्य हैं। रेवन गांव में पहले ही मृत्युभोज का बहिष्कार किया जा चुका है।

रेवन गांव से हुई थी मृत्युभोज बंद करने शुरुआत झांसी में मृत्युभोज बंद करने की शुरुआत मोठ से 45 किमी दूर रेवन गांव से हुई थी। 25 अगस्त 2024 को गांव में पंचायत हुई। इसमें सभी वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया। पंचायत में निर्णय लिया गया था कि अब से गांव में मृत्युभोज नहीं होगा।

लोगों का कहना था कि मृत्युभोज शास्त्र सम्मत नहीं, यह किसी के लिए दिखावा है तो ज्यादातर लोगों के लिए समाज क्या कहेगा…वाली मजबूरी। गांव में निर्णय के बाद कोई मृत्युभोज नहीं हुआ। लोग मृत्युभोज की बजाए 12 या 13 बाह्मणों को भोज करा रहे हैं। साथ ही गरीबों को दान कर रहे हैं।

रिश्तेदारों को भोजन कराने का शास्त्रों में उल्लेख नहीं: शंकाराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद शंकाराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि शास्त्रों में मुत्युभोज में तीन तरह के भोजन का प्रावधान है। अंत्येष्टि के 11वें दिन महापात्र का भोजन कराया जाना चाहिए। साथ 12 या 13 दिन 13 ब्राह्मणों को भोजन कराने की बात कही गई है। शास्त्र में 12वें दिन ही ब्राह्मणों को भोजन कराने को कहा गया है। अत्येष्टि के 13वें दिन लोग सगे-संबंधियों को भोजन कराते तो हैं, लेकिन शास्त्रों में इसका कोई उल्लेख नहीं है।

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