नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र के ‘समिट ऑफ द फ्यूचर’ में दुनिया भर के संकटों पर चर्चा होने वाली है। यह कार्यक्रम ऐसे समय में आयोजित किया जा रहा है, जब वैश्विक व्यवस्था बिखर रही है। दुनिया का पुराना ढांचा अब बिखर रहा है। कई देश अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं, लेकिन कोई जवाबदेही नहीं है। यूक्रेन, गाजा और सूडान जैसे देशों में युद्ध से इंसानियत शर्मसार हो रही है। ऐसे समय में UN जैसे संगठन भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। ऐसे में इन 5 बड़े मुद्दों पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।
गुटनिरपेक्षता का रास्ता आज भी प्रासंगिक:
भारत हमेशा से ही आजाद और स्वतंत्र सोच रखता आया है। 1950 के दशक में भारत ने कोरियाई युद्ध को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद भारत ने गुटनिरपेक्षता के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए दुनिया को दो ध्रुवों में बंटने से रोकने की कोशिश की। आज एक बार फिर दुनिया दो खेमों में बंटती दिख रही है। भारत किसी भी खेमे में शामिल होता हुआ नहीं दिख रहा।
भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर UN में वोटिंग के दौरान किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं किया। इस वजह से कई विकासशील देशों को भी अपनी आवाज बुलंद करने की हिम्मत मिली। भारत ने साफ कर दिया कि युद्ध कोई हल नहीं है और बातचीत से ही शांति आएगी। आज भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो रूस और यूक्रेन को बातचीत की मेज पर ला सकता है।
आत्मनिर्भरता जरूरी:
अंतरराष्ट्रीय संगठनों का कमजोर होना इस बात का प्रमाण है कि पश्चिमी देशों का दबदबा अब पहले जैसा नहीं रहा। दुनिया के बाकी देश अब पश्चिमी देशों की बात मानने को तैयार नहीं हैं। यदि चीन सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति स्थापित करवा सकता है तो अमेरिका भी ऐसा ही कर सकता था, लेकिन गाजा युद्ध ने ऐसा नहीं होने दिया। अफ्रीकी देश अब अपने उपनिवेशवादियों से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। तुर्की भी दुनिया में अपनी धाक जमा रहा है। कई और देश भी गुटबाजी से दूर रहकर अपना भविष्य खुद तय करना चाहते हैं।
UN को सबकी आवाज बनना होगा:
UN द्वारा लिए गए फैसले सिर्फ चंद विकसित देशों के लिए नहीं, बल्कि दुनिया के सभी देशों के हित में होने चाहिए। छोटे और विकासशील देशों को UN से ही उम्मीद है कि वो उनकी आवाज दुनिया के सामने रखेगा। यही वजह है कि भारत ने अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान ‘Voice of the Global South Summit’ का आयोजन किया था। भारत ने अफ्रीकी संघ को भी G20 में शामिल करवाने में अहम भूमिका निभाई। भारत चाहता है कि G20 द्वारा लिए गए फैसले जमीनी हकीकत के करीब हों।
UN, WTO, IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं को आज जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उसकी जड़ 1945 का उनका ढांचा है। दुनिया बदल चुकी है और UN को भी समय के साथ बदलना होगा। भारत समेत कई देश UN में बदलाव की मांग कर रहे हैं। भारत UNSC में भी सुधार चाहता है। जब तक UNSC में भारत और अफ्रीकी देशों को स्थायी सदस्यता नहीं दी जाती, तब तक दुनिया में शांति स्थापित नहीं हो सकती।
छद्म युद्ध और आतंकवाद:
युद्ध और छद्म युद्ध से किसी भी देश को फायदा नहीं हुआ है। यदि कोई देश अपनी सुरक्षा चाहता है तो उसे दूसरे देशों की सुरक्षा को खतरा नहीं पैदा करना चाहिए। नाटो ने रूस की सीमाओं के करीब आकर उसे उकसाने का काम किया है। चीन द्वारा भारतीय सीमा पर की जा रही घुसपैठ से भी यही स्थिति पैदा होगी। सुरक्षा किसी एक देश का अधिकार नहीं है। इजरायल, ईरान और आसपास के देश पहले से कहीं ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। आतंकवाद ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया है।
तकनीक का इस्तेमाल नैतिकता के साथ:
यदि दुनिया से गरीबी, भुखमरी और असमानता को खत्म नहीं किया गया तो शांति स्थापित करने की सारी कोशिशें बेकार हैं। सतत विकास लक्ष्यों और पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना भी उतना ही जरूरी है। हमें अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए करना होगा। तकनीक का इस्तेमाल नैतिकता के दायरे में रहकर होना चाहिए। इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए नियम-कानून बनाने होंगे। जलवायु परिवर्तन हो या क्षेत्रीय संघर्ष, इन सभी वैश्विक चुनौतियों का समाधान खोजने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है।