देश भर में चल रहे बुलडोजर एक्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देश तय करेगा. कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगना उसका मकान गिराने का आधार नहीं हो सकता. बुलडोजर कार्रवाई से पहले उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन होना चाहिए. इसमें मकान मालिक को नोटिस भेजना, जवाब और अपील का मौका देना शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई की अगली तारीख 17 सितंबर तय की है. जस्टिस बी आर गवई और के वी विश्वनाथन की बेंच ने सभी पक्षों से कहा है कि वह अपने सुझाव दें. इन्हें देखने के बाद वह सभी राज्यों पर लागू होने वाले दिशानिर्देश तय करेगा. कोर्ट ने वरिष्ठ वकील नचिकेता जोशी को सभी पक्षों से सुझाव लेने का ज़िम्मा सौंपा है.
2022 में दिल्ली के जहांगीरपुरी में रामनवमी के जुलूस पर पथराव के बाद एमसीडी ने बुलडोजर कार्रवाई शुरू की थी. इसके खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिन्द कोर्ट पहुंचा था. बाद में जमीयत ने यूपी समेत कई राज्यों में चल रहे बुलडोजर एक्शन को चुनौती दी. जमीयत ने कहा कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के यह बुलडोज़र चलाए जा रहे हैं. इसमें मंशा अवैध निर्माण हटाने से अधिक लोगों को सबक सिखाने की होती है. अधिकतर जगहों पर एक समुदाय विशेष को खास निशाना बनाया जा रहा है.
मामले में यूपी सरकार के लिए पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई की शुरुआत में ही कहा कि किसी पर अपराध का आरोप लगने के चलते मकान गिराने की कार्रवाई सही नहीं है. म्यूनिसिपल नियमों के मुताबिक नोटिस देकर ही अवैध निर्माण को ढहाया जा सकता है. मेहता ने यह भी कहा कि यूपी में जिन लोगों पर कार्रवाई हुई, उन्हें अवैध निर्माण को लेकर पहले ही नोटिस दिया गया था.
इस बीच जमीयत के लिए पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे समेत कई और वकीलों ने दूसरे राज्यों में हाल में हुए एक्शन का हवाला दिया. उन्होंने बताया कि एमपी में एक व्यक्ति का 50-60 साल पुराना मकान गिरा दिया गया. राजस्थान के उदयपुर में एक बच्चे ने दूसरे को चाकू मार दिया, तो उसका मकान ढहा दिया गया. इस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, “किसी लड़के की गलती की सज़ा उसके पिता को देना सही नहीं हो सकता.”
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह साफ किया कि वह सड़क रोक कर किए गए अवैध निर्माण को कोई संरक्षण नहीं देगा. उन पर सरकार कार्रवाई कर सकती है. उसकी सुनवाई सिर्फ इस बात पर है कि अवैध निर्माण का आरोप लगा कर बिना किसी नोटिस के मकान न गिराए जाएं.