नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर रेचिन ला पर्वतीय दर्रे वाले इलाके में चीनी सेना के टैंक आगे बढ़ रहे थे। 31 अगस्त 2020 की वो रात थी। सीमा पर स्थिति बेहद तनावपूर्ण स्थिति में पहुंच चुकी थी। उस समय तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को फोन किया। रक्षा मंत्री ने उस रात फैसला जनरल एमएम नरवणे पर छोड़ते हुए कहा था, ‘जो उचित समझो वो करो’। अपने संस्मरण ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में पूर्व सेना प्रमुख नरवणे ने सिंह के निर्देश के साथ-साथ संवेदनशील स्थिति पर उस रात रक्षा मंत्री के अलावा विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) के बीच फोन कॉल की झड़ी का भी जिक्र किया है। नरवणे ने कहा कि सिंह के फोन के बाद उनके दिमाग में सैकड़ों अलग-अलग विचार कौंध गए। उन्होंने लिखा है कि मैंने आरएम (रक्षा मंत्री) को स्थिति की गंभीरता से अवगत कराया, जिन्होंने कहा कि वह रात लगभग साढ़े दस बजे तक मुझसे संपर्क करेंगे, जो उन्होंने किया।
नरवणे ने बताई उस रात की बात
पूर्व सेना प्रमुख ने लिखा है कि उन्होंने (रक्षा मंत्री) कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री से बात की है और यह पूरी तरह से एक सैन्य निर्णय है। ‘जो उचित समझो वो करो’। नरवणे ने कहा कि जिम्मेदारी अब पूरी तरह से मुझ पर थी। मैंने एक गहरी सांस ली और कुछ मिनटों के लिए चुपचाप बैठा रहा। दीवार पर लगी घड़ी की ‘टिक-टिक’ को छोड़कर सबकुछ शांत था। उन्होंने लिखा है कि एक दीवार पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का नक्शा था, दूसरी दीवार पर पूर्वी कमान का। वे अचिह्नित नक्शे थे, लेकिन जैसे ही मैंने उन्हें देखा, मैं प्रत्येक यूनिट तथा फॉर्मेशन के स्थान की कल्पना कर सकता था। हम हर तरह से तैयार थे, लेकिन क्या मैं वास्तव में युद्ध शुरू करना चाहता था? संस्मरण में, जनरल नरवणे ने उस रात की अपनी विचार प्रक्रिया को रेखांकित किया है।
उन्होंने उस रात के विचारों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि कोविड महामारी के कारण देश बुरी स्थिति में था। अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही थी, वैश्विक आपूर्ति शृंखला टूट गई थी। कार्रवाई के लंबा खिंचने पर क्या हम इन परिस्थितियों में लंबे समय तक उपकरणों आदि की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित कर पाएंगे? नरवणे ने लिखा है, वैश्विक क्षेत्र में हमारे समर्थक कौन थे, और चीन तथा पाकिस्तान से क्या खतरा है? मेरे दिमाग में सैकड़ों अलग-अलग विचार कौंध गए। उन्होंने कहा कि यह कोई युद्ध-खेल नहीं था जो आर्मी वॉर कॉलेज में मिट्टी के बने मॉडल से खेला जा रहा हो, बल्कि जीवन और मरण की स्थिति थी। नरवणे ने लिखा है कि कुछ क्षण शांत विचार के बाद, मैंने उत्तरी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी को फोन किया। मैंने उनसे कहा कि पहली गोली हम नहीं चला सकते क्योंकि इससे चीन को स्थिति को भड़काने और हमें हमलावर बताने का बहाना मिल जाएगा। उन्होंने लिखा है कि यहां तक कि मुखपरी (कैलाश रेंज पर) में भी पिछले दिन, पीएलए (चीनी सेना) ने ही पहली गोलीबारी की थी (पीएलए द्वारा केवल दो गोलियां और हमारे द्वारा तीन गोलियां दागी गईं)। यह मीडिया की नजरों से बच गया था। नरवणे ने कहा कि उन्हें लगा कि सेना को यही रुख बरकरार रखना चाहिए।
हमारे टैंक का मुकाबला नहीं कर सकते थे चीनी टैंक
उन्होंने लिखा कि इसके बजाय, मैंने उनसे कहा कि हमारे टैंकों की एक टुकड़ी को दर्रे के आगे के ढलानों पर ले जाएं और उनकी बंदूकें दबा दें ताकि पीएलए हमारी बंदूकों की नली पर नीचे की तरफ नजर रखे। नरवणे ने लिखा है कि यह तुरंत किया गया और पीएलए टैंक, जो तब तक शीर्ष से कुछ सौ मीटर के भीतर पहुंच चुके थे, अपने रास्ते पर ही रुक गए। उन्होंने लिखा कि उनके (चीनी सेना) हल्के टैंक हमारे मध्यम टैंकों का कोई मुकाबला नहीं कर सकते थे। यह झांसा देने का खेल था और पीएलए की नजर पहले नीचे की तरफ हुई। नरवणे ने लिखा कि पीएलए ने 29-30 अगस्त की मध्यरात्रि मोल्दो से चुटी चांगला के क्षेत्र में पैंगोंग त्सो के दक्षिण तट की ओर सैनिकों को भेजा। उनके अनुसार, शाम तक, वे कैलाश रेंज के क्षेत्र में कुछ सैनिकों को आगे ले गए। पूर्व सेना प्रमुख ने अपने संस्मरण में लिखा है कि 30 तारीख की शाम तक, भारतीय सेना पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट के साथ-साथ कैलाश रेंज पर मजबूत स्थिति में थी। उन्होंने कहा कि पीएलए की प्रतिक्रिया आने में ज्यादा समय नहीं था। 30 तारीख की शाम को ही, उन्होंने कैलाश रेंज क्षेत्र में कुछ सैनिकों को आगे बढ़ाया। वे हमारे स्थानों से लगभग 500 मीटर पहले रुक गए और खुदाई शुरू कर दी।
31 अगस्त का बढ़ गई थी हलचल
नरवणे ने कहा कि पीएलए के स्थान कम ऊंचाई पर थे और सीधे हमारी निगरानी में थे। वैसे तो, उनसे हमें कोई खतरा नहीं था, लेकिन अगर वे आकर हमारे इलाकों से आगे निकलने या उन्हें घेरने की कोशिश करते, तो हमें कार्रवाई करनी होती। स्थिति तनावपूर्ण थी और बिलकुल भड़कने के कगार पर थी। उनका कहना है कि 31 अगस्त को दिन के उजाले में पीएलए की ओर से काफी हलचल देखी गई, जबकि भारतीय सेना ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। नरवणे के अनुसार, दोपहर के समय, मोल्दो में चीन की तरफ वाले क्षेत्र में पीएलए के बख्तरबंद वाहनों की गतिविधि देखी गई। उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए तारा बेस पर मौजूद हमारे टैंकों को भी रेचिन ला तक जाने का आदेश दिया गया।
पीएलए सैनिकों का जमावड़ा
उन्होंने कहा कि कुछ अन्य स्थानों पर भी पीएलए सैनिकों का जमावड़ा देखा गया। पूर्व सेना प्रमुख ने लिखा है कि 31 अगस्त की रात सवा आठ बजे, जो (जोशी) ने मुझे फोन किया, वह काफी चिंतित थे। उन्होंने बताया कि पैदल सेना के साथ चार टैंक धीरे-धीरे रेचिन ला की ओर बढ़ने लगे हैं। नरवणे के अनुसार, उन्होंने रोशनी करने वाला गोला दागा, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। मुझे स्पष्ट आदेश थे कि ‘जब तक कि ऊपर से मंजूरी न मिल जाए’, तब तक मैं गोली नहीं चलाऊंगा। इसके बाद अगले आधा घंटे में रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष और मेरे बीच फोन की झड़ी लग गई।
फोन आया कि टैंक बढ़ रहे हैं
उन्होंने लिखा है कि प्रत्येक व्यक्ति से मेरा प्रश्न था, ‘मेरे लिए आदेश क्या हैं?’ रात नौ बजकर दस मिनट पर उत्तरी कमान से फिर फोन आया कि टैंक आगे बढ़ रहे हैं और अब चोटी से एक किमी से भी कम दूरी पर हैं। नरवणे ने कहा कि मैंने रात नौ बजकर 25 मिनट पर फिर से रक्षा मंत्री को फोन किया और एक बार फिर स्पष्ट दिशा-निर्देश मांगे। स्थिति तनावपूर्ण थी। टेलीफोन घनघना रहे थे। इस बीच, हॉट लाइन संदेशों का आदान-प्रदान हुआ। पीएलए कमांडर मेजर जनरल लियू लिन ने कहा कि दोनों पक्षों को आगे की कोई भी कार्रवाई रोक देनी चाहिए। दोनों स्थानीय कमांडरों को अगली सुबह साढ़े नौ बजे दर्रे पर मिलना चाहिए।
रात 10 बजे किया था फोन
नरवणे ने लिखा है कि उन्होंने यह खबर साझा करने के लिए रक्षा मंत्री सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को रात 10 बजे फोन किया। उन्होंने कहा कि मैंने अभी फोन रखा ही था कि जो (उत्तरी सैन्य कमांडर जोशी) ने रात 10 बजकर 10 मिनट पर एक बार फिर फोन किया। नरवणे के अनुसार, उन्होंने (जोशी) कहा कि टैंक फिर से ऊपर की ओर बढ़ने लगे हैं और अब केवल 500 मीटर की दूरी पर हैं। उन्होंने कहा कि जोशी ने सिफारिश की कि पीएलए को रोकने का एकमात्र तरीका अपने मध्यम तोपखाने को मुंह खोलना है, जो कार्रवाई के लिए तैयार हैं और इंतजार कर रहे हैं। स्थिति को कैसे संभाला गया, यह बताते हुए नरवणे ने कहा, ‘मेरी स्थिति गंभीर थी…।