इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पीएम मोदी और सीएम योगी के खिलाफ इंटरनेट मीडिया में अभद्र टिप्पणी, हेट स्पीच का प्रचार करने के आरोपी पत्रकार को जमानत देने से इनकार कर दिया। यह आदेश जस्टिस मंजूरानी चौहान ने वाराणसी के लालपुर थाने में दर्ज आपराधिक केस में आरोपी अमित मौर्य की याचिका पर दिया।
जस्टिस मंजू रानी चौहान ने व्यक्तिगत लाभ के लिए प्रकाशकों द्वारा प्लेटफार्मों के दुरुपयोग, रचनात्मक आलोचना के मूल्य और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को बनाए रखने की आवश्यकता पर भी जरूरी टिप्पणियां की।
हाई कोर्ट ने पत्रकारों व प्रकाशकों को कड़ी नसीहत देते हुए कहा कि पारदर्शिता व जवाबदेही के साथ भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों की सही जानकारी सार्वजनिक करना उचित है किंतु मीडिया मंच का व्यक्तिगत लाभ व धनउगाही के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इससे पत्रकारिता की विश्वसनीयता कमजोर होती है और जनविश्वास खत्म होता है। मीडिया का दुरुपयोग निंदनीय है। सटीक तथ्यात्मक जानकारी ही दी जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि किसी को मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल औजार की तरह करने की छूट नहीं दी जा सकती। समाज का लोकतांत्रिक ताना-बाना दुरुस्त रखने के लिए जवाबदेही जरूरी है। पत्रकार नैतिक मूल्यों का पालन करें। पत्रकारिता पर जन विश्वास कायम रखना लोकतांत्रिक शासन व्यवस्
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि आलोचना करने का अधिकार है किंतु उसमें पारदर्शिता व सार्वजनिक सहभागिता की संस्कृति हो। जिम्मेदारी व शालीनता होनी चाहिए। किसी का चरित्र हनन मूल उद्देश्य से भटकाना है। शत्रुतापूर्ण संवाद कटुता बढ़ाता है। लोकतंत्र में सरकारी नीति व कार्यों की रचनात्मक आलोचना होनी चाहिए। नफरती भाषा कलह ही पैदा करती है। लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है। असहमति का अधिकार जिम्मेदारी के साथ आता है। मापदंडों का पालन किया जाना चाहिए। बहुलतावादी समाज में धार्मिक सहिष्णुता व सामंजस्य जरूरी है। ऐसी रिपोर्टिंग न हो, जिससे किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे।
कोर्ट ने आरोपी की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याची नैतिक मूल्यों के मानक की कसौटी पर विफल रहा। जबरन वसूली की खबर देना शक्ति का दुरुपयोग है। ऐसे में जमानत नहीं दी जा सकती है।