एम्स दिखाया या नहीं? एक बार एम्स दिखा लीजिए, बहुत मुमकिन है आपने कभी न कभी ये किसी को कहा हो या परिचित, नाते-रिश्तेदारों ने आपको देर-सबेर सलाह दी हो. एम्स के इलाज पर क्या आम, क्या खास, हर किसी को बहुत हद तक यकीन है.
ये ऐतबार तब और बढ़ जाता है जब आपको मालूम हो कि हर साल देश की करीब साढ़े 5 करोड़ आबादी (डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट) स्वास्थ्य इलाज पर खर्च की वजह से गरीबी की चपेट में आ जाती है. कम आय वर्ग वाले परिवार चाहते हैं कि इलाज या तो कम खर्चे में या मुफ्त में हो जाए, जो गलत भी नहीं है. एम्स उन्हें न सिर्फ किफायती, बल्कि मुफ्त और बेहतर इलाज मुहैया कराती है.
लोग आस लगाए बैठे होते हैं कि उनके राज्य, जिले, शहर में काश एक एम्स खुल जाता और उनको दिल्ली, पटना, भोपाल, रायपुर, जोधपुर जैसे पुराने और कई बार उनकी घर से दूर एम्स की चक्कर न लगानी पड़े. ये सब बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज हरियाणा के रेवाड़ी में एक एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) की आधारशिला रख दी. जाहिर सी बात है रेवाड़ी के लोग भी इससे खुश होंगे.
प्रधानमंत्री ने हिसार में शिलान्यास करते हुए कहा कि 2014 के बाद 15 एम्स उनकी सरकार में स्वीकृत हुए हैं. साथ ही पीएम ने दावा किया कि आजादी के बाद साल 2014 तक जहां 380 मेडिकल कॉलेज बनाए गए, वहीं उनकी सरकार के 10 सालों ही में 300 मेडिकल कॉलेज बना दिए गए.
मीडिया रपटों के मुताबिक, आने वाले हफ्तों में पीएम जम्मू, राजकोट (गुजरात), बठिंडा (पंजाब), कल्याणी (पश्चिम बंगाल), मंगलगिरी (आंध्र प्रदेश) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में पहले ही के घोषित 6 और एम्स का उद्घाटन करेंगे. जम्मू वाले का उद्घाटन 20 फरवरी को होना है जबकि बाकी के पांचों का 25 फरवरी को होगा.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया का कहना है कि इन 7 राष्ट्रीय महत्त्व की अस्पतालों की कुल लागत 10 हजार करोड़ रुपये के करीब है जहां हर एक अस्पताल में रोजाना 10 हजार मरीज इलाज कराने आएंगे. यहीं ये भी बता दें कि 2024-25 के अंतरिम बजट में, जो अभी हाल ही में पेश हुआ, मोदी सरकार ने एम्स के निर्माण के लिए 6,800 करोड़ रुपये का आवंटन किया है.
एम्स रेवाड़ी के साथ देश में हुए 23 एम्स
एम्स रेवाड़ी जिसे एम्स माजरा भी कहा जा रहा, इसका जिक्र 2019 के बजट में आया था. करीब 1 हजार 650 करोड़ की लागत वाले रेवाड़ी एम्स में 720 बेड, 75 आईसीयू बेड, 30 ट्रॉमा बेड, 100 सीटों वाला मेडिकल कॉलेज, 60 सीटों वाला नर्सिंग कॉलेज, 30 बिस्तरों वाला एक आयुष ब्लॉक, इसके अलावा भी कर्मचारियों के लिए रहने के मकान, छात्रों के लिए छात्रावास जैसी सहूलियत सरकार ने गिनवाई है.
मोदी सरकार का कहना है कि 15 एम्स इस सरकार में स्वीकृत हुए जबकि 8 एम्स का ऐलान पीछे की सरकारोंं ने किया था. इस तरह हिसार को लेकर देश में एम्स की संख्या 23 पहुंच गई.मोदी सरकार अपनी पीठ ये कह के थपथपाती है कि 2014 में जब उन्होंने सरकार संभाली तो देश में केवल 7 एम्स बन कर तैयार थे, हमारी सरकार ने इस संख्या को दो दर्जन तक पहुंचा दिया.
एम्स की घोषणा, आधारशिला, फिर निर्माण, उद्घाटन और उस पर भी पूरी संचालित है या नहीं? इसकी पड़ताल काफी मकड़जाल से भरी है. मकड़जाल से इसलिए कि घोषणा किसी और सरकार में होती है, आधारशिला कोई और रखता है और लोकार्पण किसी और के हिससे आ जाता है. एम्स की जो भी स्थापना हुई, वह पूरी तरह संचालित है या नहीं, इसको लेकर भी एक मत नहीं है. फुली फंक्शनल, फंक्शनल, पार्शियली फंक्शनल, अंडर कंस्टक्शन जैसी कई कैटेगरी हैं.
मतलब एम्स कितना बन कर तैयार हुआ, इसको लेकर अलग-अलग श्रेणियां हैं. ऐसे में, क्यों न ये समझा जाए कि किस सरकार ने कितने एम्स बनवाए, किसकी की गई घोषणा कब जाकर पूरी हुई और अगर हुई भी तो विवाद क्यों उपजते रहे. साथ ही, सबसे अहम सवाल, मोदी सरकार ने जिन 15 एम्स की आधारशिला रखी, क्या वो आज की तारीख में पूरी तरह काम कर रहे हैं?
कांग्रेस सरकार में कितने एम्स बने?
एम्स का इतिहास पंडित नेहरू के कार्यकाल तक जाता है. एम्स जैसी एक स्वास्थ्य संस्थान की देश को जरुरत है, ये बात पहली बार साल 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार को समझ आई.
तब स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर हुआ करती थीं. कहते हैं कि पहला अस्पताल बनना कोलकता (तब के कैलकटा) में था लेकिन वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय ने अड़ंगा लगा दिया और फिर एम्स दिल्ली में बना. इसके बाद एम्स के हवाले से अगले करीब साढ़े चार दशकों तक सन्नााटा छाया रहा.
2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल किले की प्राचीर से ‘प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना’ के तहत देश में एम्स जैसे और नए संस्थान बनाने की बात की. अगले तीन सालों में देश के पिछड़े राज्यों में ये एम्स बनने थे. भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश को इसके लिए चुना गया.
वाजपेयी सरकार ने 6 नए एम्स का ऐलान तो कर दिया लेकिन अगले बरस सरकार बदल गई. इन सभी एम्स की नींव यूपीए सरकार में रखी गई और उन्ही के शासन में बनकर तैयार भी हुई. ये और बात की कुछ-कुछ काम मनमोहन सरकार के जाने के बाद भी इन अस्पतालों में होता रहा.
आप पूछेंगे कि तो क्या मनमोहन सरकार ने 1 भी नए एम्स का ऐलान अपने कार्यकाल में नहीं किया? जवाब है ऐसा नहीं. मनमोहन सिंह की सरकार ने 2009 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में एम्स की घोषणा की लेकिन इसकी स्थापना 2018 में हुई जब देश में एनडीए की सरकार आ चुकी थी. रायबरेली एम्स की नींव हालांकि 2013 ही में पड़ गई थी जब सोनिया गांधी ने भूमि पूजन कर काम की शुरुआत कर दी.
इस तरह तकनीकी तौर पर अगर देखें तो मनमोहन सरकार ने कुल 6 एम्स बनाए (घोषणा जिसकी वाजपेयी सरकार ने की थी). रायबरेली की घोषणा और भूमि पूजन मनमोहन सरकार में हुई मगर ये साल 2018 में बन कर तैयार हुआ, इसलिए मोदी सरकार इस पर अपना हक जमाती है. खैर, अब आते हैं मोदी सरकार के 10 सालों पर.
मोदी सरकार: एक के बाद एक कई एम्स
देश के अलग-अलग राज्यों में एम्स के ऐलान और उनकी स्थापना अब तक कुल आठ फेज में होती गई है. भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश में जो 6 एम्स बने, वह पहला फेज था. ये मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान अमल में आया.
इसके बाद मोदी सरकार ने अगले सात फेज में और 15 एम्स को कैबिनेट की मंजूरी दी. 2014 में एनडीए सरकार ने आंध्र प्रदेश के मंगलगिरी, महाराष्ट्र के नागपुर, पश्चिम बंगाल के कल्यानी, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में कुल चार एम्स बनाने का वादा किया.
अगले साल 2015 में सरकार ने पंजाब के बठिंडा, असम के गुवाहाटी, जम्मू, हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर, तमिलनाडु के मदुरई, बिहार के दरभंगा समेत कुल छह एम्स और बनाने की बात की.
2016 गैप रहा. 2017 में फिर जाकर मोदी सरकार ने झारखंड के देवघर, गुजरात के राजकोट और तेलंगाना के बीबीनगर में समेत तीन नए एम्स की घोषणा की.
फिर 2018 गैप रहा. 2019 में जम्मू कश्मीर के अवंतीपोरा, हरियाणा के हिसार में एम्स बनाने की बात की. इस तरह कुल 15 एम्स का ऐलान मौजूदा सरकार कर चुकी है.
किन एम्स का काम पूरा, किनका अधूरा?
जवाहरलाल नेहरू के समय का बना दिल्ली एम्स, मनमोहन सरकार के दौरान बने 6 एम्स, ये सभी आज की तारीख में फुली फंक्शनल हैं, आसान लफ्जों में कहें तो ये पूरी तरह काम कर रहे हैं.
हालांकि, बीजेपी और कांग्रेस के बीच मनमोहन सरकार में बने 6 एम्स पर भी आरोप-प्रत्यारोप चलता का एक दौर रहा. जहां एक पक्ष का मानना था कि इन सभी अस्पतालों की स्थापना भले 2012 में हुई, घोषणा तो बाजपेयी सरकार में की गई और बहुत सी स्वास्थ्य सेवाएं भी 2014 के बाद शुरू हो सकीं. वहीं, कांग्रेस का कहना है कि ऐसा कुछ भी नहीं, सारा क्रेडिट हमारा बनता है.
रायबरेली एम्स की बात हमने की है जिसका भूमि पूजन सोनिया गांधी ने किया, काम में तेजी मोदी सरकार के दौरान आई, अब ये फंक्शनल है, उद्घाटन अगले हफ्ते होना है. इस तरह कुल 8 एम्स की बात हो गई. हिसार एम्स का तो अभी शिलान्यास ही हुआ है, तो उसको फिलहाल छोड़ देते हैं.
बाकी के 15 एम्स जिन का ऐलान, आधारशिला, निर्माण मोदी सरकार के दौरान शुरू हुआ, उनमें से एक को भी ‘फुली फंक्शनल’ (पूरी तरह संचालित) का दर्जा हासिल नहीं है. नागपुर, गोरखपुर, बिलासपुर और देवघर तो जरुर अच्छे से संचालित रहो रहे हैं मगर अवंतीपोरा, दरभंगा जैसे एम्स अभी निर्माणाधीन ही हैं. वहीं कल्याणी, बठिंडा, बीबीनगर के एम्स पार्शियली फंक्शनल हैं यानी यहां मिलजुला कर काम हो रहा.
पिछले साल मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने बजट सत्र के दौरान बताया था कि 16 एम्स (रायबरेली सहित) फिलहाल अलग-अलग स्तर पर संचालित हैं. मंडाविया ने भी एक के फुली फंक्शनल होने की बात नहीं की थी. सरकार ने तब बताया था कि ये सभी ‘लिमिटेड ओपीडी और आईपीडी’ सुविधाओं के तहत इलाज उपलब्ध करा रहे हैं.
लिमिटेट का मतलब ही होता है सीमित. यानी ये सभी एम्स सीमित ओपीडी, आईपीडी के साथ इलाज मुहैया करा रहे. कुल जमा बात ये कि इन सभी अस्पतालों में कुछ न कुछ काम आज भी बाकी और जारी है. कई खोजी रपटों में पटना, भोपाल, रायपुर के एम्स से लेकर मोदी सरकार के दौरान के एम्स प्रोजेक्ट्स में डॉक्टर, संसाधन और लेट-लतीफी की शिकायतें आती रही हैं.