अफगानिस्तान (Afghanistan) की तालिबान सरकार ने शुक्रवार (1 दिसंबर) को घोषणा की कि चीन ने बीजिंग में उसके राजदूत को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया है. इसके बाद चीन तालिबान राजदूत की मेजबानी करने वाला पहला देश बन गया है. इसके अलावा चीन दुनिया का पहला ऐसा बन गया, जिसने तालिबानी सरकार को वैध सरकार के रूप घोषित किया है. हालांकि, इससे पाकिस्तान को जरूर झटका लग सकता है, क्योंकि तालिबान और पाकिस्तान के बीच रिश्ते बेहतर नहीं हैं. वहीं चीन पाकिस्तान का आयरन ब्रदर कहलाता है. इस तरह के समीकरण कहीं-न-कहीं पाकिस्तान के लिए चिंता का सबब बन सकता है.
हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने मंगलवार (5 दिसंबर) को एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि अफगानिस्तान लंबे समय से हमारा पड़ोसी रहा है, इसलिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय समुदाय से बाहर नहीं किया जाना चाहिए. वहीं तालिबान ने चीन के कदम को दोनों पड़ोसी देशों के बीच बढ़ते संबंधों में एक महत्वपूर्ण अध्याय बताया.
तालिबानी राजदूत ने चीन को दिया आश्वासन
तालिबान के विदेश मंत्रालय के एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि चीनी विदेश मंत्रालय के प्रोटोकॉल विभाग के महानिदेशक हांग लेई ने नवनियुक्त राजदूत असदुल्ला बिलाल करीमी से परिचय पत्र की प्रति स्वीकार की. होंग ने करीमी के आगमन को बीजिंग और काबुल के बीच सकारात्मक संबंधों को और मजबूत करने और विस्तारित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया.
होंग ने शुक्रवार (1 दिसंबर) को एक बैठक में कहा कि चीन राष्ट्रीय संप्रभुता और अफगानिस्तान के लोगों के फैसलों का सम्मान करता है. ये आंतरिक अफगान मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है, न ही उसने अतीत में ऐसा किया है. इसके अलावा नवनियुक्त राजदूत अब्दुल्ला बिलाल करीमी ने चीनी पक्ष को आश्वासन दिया कि अफगानिस्तान के क्षेत्र से किसी को कोई खतरा नहीं है.
अफगानिस्तान में चीनी राजदूत
चीन ने भले ही पाकिस्तान के दुश्मन देश तालिबान को वैध राष्ट्र की मान्यता दे दी है, लेकिन उन्होंने अभी तक इजरायल को वैध राष्ट्र का दर्जा नहीं दिया है. इसी साल 13 सितंबर को चीन ने झाओ शेंग को औपचारिक रूप से तालिबान में अपना राजदूत घोषित किया था. इसके बाद अगस्त 2021 में झाओ जिंग पद संभालने वाले पहले विदेशी राजदूत बन गए.
हाल के महीनों में तालिबान के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के साथ ही राज्य और निजी चीनी कंपनियों ने अफगानिस्तान में निवेश करने में रुचि दिखाई है. हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग क्षेत्र प्रतिबंधों ने विदेशी निवेशकों को बड़ी पहल करने से रोक दिया है.
चीन का अफगानिस्तान से दोस्ती करने का कारण
चीन और तालिबान के बीच बढ़ते दोस्ती दोनों देशों के लिए काफी मददगार साबित हो सकती है. इसके कई कारण है. एक तरफ तालिबान पूरी दुनिया में अपनी छवि को सुधारने की कोशिश में लगा हुआ है. दूसरी तरफ चीन नॉर्थ-साउथ में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है. उसका मकसद कहीं-न-कहीं भारत को टक्कर देने का है. चीन अफगानिस्तान में निवेश कर वहां मौजूद खनिज पदार्थ को पाना चाहता है.
अफगानिस्तान पर प्रचुर मात्रा में लिथियम मौजूद है, जिसे सफेद सोना कहते हैं. इसके अलावा चीन की नजरें अफगानिस्तान के कच्चे तेलों पर टिकीं हैं. वो अपने महत्वाकांक्षी चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी CPEC को अफगानिस्तान के जरिए मध्य एशियाई देशों तक ले जाना चाहता है.