रेल बजट अलग से जरूरी नहीं, PM मोदी को ये आइडिया देने वाले बिबेक देबरॉय नहीं रहे… जानिए उनके बड़े काम

जाने-माने अर्थशास्‍त्री बिबेक देबरॉय का 1 नवंबर 2024 को 69 साल की उम्र में निधन हो गया. बिबेक देबरॉय पद्मश्री से सम्‍मानित थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थ‍िक सलाहकार परिषद के चेयरमैन थे. वे नीति आयोग के सदस्‍य भी रह चुके थे. उन्‍होंने कई किताबें भी लिखीं और उन्‍होंने महाभारत और पुराणों का सरल अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी किया था. पिछले साल ‘नए संविधान’ की मांग करके वे विवादों में भी आए थे. 

बिबेक देबरॉय के बारे में कहा जाता है कि देश की आर्थिक नीतियों को आकार देने में इनकी मुख्‍य भूमिका रही है. भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में भी इनका खासा योगदान रहा है. आइए जानते हैं कि प्रधानमंत्री के सलाहकार परिषद में शामिल होने से पहले वो क्‍या करते थे? 

कब हुआ था बिबेक देबरॉय का जन्‍म 
अर्थशास्‍त्री के तौर पर बड़ी पहचान बनाने वाले बिबेक देबरॉय का जन्‍म मेघालय के शिलांग में 25 जनवरी साल 1955 को हुआ था. इनके दादा-दादी बांग्‍लादेश के सिलहट से भारत आए थे और उनके पिता भारत सरकार की इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट्स सर्विस में काम करते थे. देबरॉय की शुरुआती शिक्षा पश्चिम बंगाल के नरेंद्रपुर स्थित रामकृष्ण मिशन विद्यालय से हुई. इसके बाद उन्होंने इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन की डिग्री कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से हासिल की. देबरॉय ने इकोनॉमिक्स में ही मास्टर्स किया. इसके लिए वो दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स आए. 

वो ट्रिनिटी कॉलेज स्कॉलरशिप पर आगे की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज चले गए. यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में बिबेक देबरॉय अपने सुपरवाइजर और ब्रिटिश इकोनॉमिस्ट फ्रैंक हान से मिले. हान की निगरानी में देबरॉय ने जनरल इक्विलिब्रियम फ्रेमवर्क पर काम किया. वैसे तो देबरॉय यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज अपनी PhD करने गए थे. लेकिन उन्होंने वहां से MSc डिग्री भी हासिल की और अपने देश वापस आ गए.

IIFT के रह चुके थे कुलाधिपति 
पढ़ाई करके जब देश वापस आए तो बिबेक देबरॉय ने साल 1979 से 1983 के बीच कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में बतौर लेक्‍चरर के तौर पर पढ़ाया. इसके अलावा, वे गोखले इन्स्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड (IIFT) में कुलाधिपति थे. जब आर्थिक उदारीकरण के बाद सरकार को बड़े पैमाने पर नई नीतियों के लिए एक्‍सपर्ट्स की आवश्‍यकता हुई तो साल 1993-98 के बीच देबरॉन ने वित्त मंत्रालय में लीगल रिफॉर्म्स के प्रोजेक्‍ट पर काम किया. 

रेल मंत्रालय में भी थी बड़ी भूमिका
साल 2004 से 2009 के बीच देबरॉय नेशनल मैन्युफैक्चरिंग कॉम्प्टीटिव काउंसिल के सदस्य भी रहे. इसके बाद उन्हें 2014-15 के बीच रेल मंत्रालय की हाई पावर कमेटी का चेयरमैन नियुक्त किया गया. रेल सेक्टर को लेकर देबरॉय कमेटी के सुझाव चर्चा (और कुछ मामलों में विवाद) का विषय बने थे. कमेटी ने शताब्दी और राजधानी जैसी प्रीमियम ट्रेनों के संचालन में प्राइवेट सेक्टर को लाने की सिफारिश की. साथ ही सिफारिश की थी कि रेलवे का अलग से बजट पेश करने की जरूरत नहीं है. 

पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद के बने चेयरमैन 
मोदी सरकार योजना आयोग की जगह नीति आयोग ले आई, तो देबरॉय को वहां भी जगह मिली. देबरॉय जनवरी 2015 में आयोग के स्थाई सदस्य बने. साल 2019 तक उन्होंने यही काम किया. सितंबर 2017 में देबरॉय को पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC) का चेयरमैन नियुक्त किया गया. यानी भारत के प्रधानमंत्री को आर्थिक मामलों पर सलाह देने वाली कमेटी के अध्यक्ष बना दिए गए. इसके अलावा सितंबर 2018 से सितंबर 2022 के बीच उन्होंने इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट के प्रेसिडेंट के रूप में भी काम किया.

गीता और वेद का अनुवाद किया
एक स्कॉलर, टीचर और सरकार के लिए चोटी के सलाहकार होने के साथ-साथ देबरॉय एक लेखक भी थे. उन्‍होंने कई किताबें भी लिखीं. उन्होंने महाभारत से लेकर भगवत गीता, वेद और रामायण का अनुवाद भी किया है. देबरॉय को साल 2015 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार – पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था. 

 

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