नई दिल्ली। शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पर 17 अक्टूबर शनिवार से शुरू होगी और 25 अक्टूबर 2020 रविवार को नवमी तिथि पर पूर्ण होगी। इस बार देवी का आगमन अश्व अर्थात् घोड़े पर हो रहा है और देवी भैंसे पर सवार होकर वापस जाएंगी। देवी के आने और जाने के वाहनों के अनुसार आगामी छह माह के देश-दुनिया के भविष्य का संकेत मिलता है। नवरात्रि में मां दुर्गा का आगमन कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर होता है। पृथ्वी पर भक्त मां दुर्गा की आराधना-पूजा, जप, तप, साधना करके उनकी कृपा पाने का प्रयास करते हैं। देवी मां जब कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर आती हैं तो वे किसी ना किसी वाहन पर सवार होकर आती हैं और जाते समय भी किसी वाहन पर जाती हैं।
भागवत पुराण
देवी के आगमन का वाहन नवरात्रि प्रारंभ होने के दिन से तय होता है और जाने का वाहन नवरात्रि समाप्त होने के दिन से तय होता है। इसके लिए देवी भागवत पुराण में एक श्लोक दिया गया है-
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता।।
अर्थात्- सोमवार या रविवार को घट स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि प्रारंभ होने पर देवी का वाहन घोड़ा होता है। गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्रि शुरू होने पर देवी डोली में बैठकर आती हैं। बुधवार से नवरात्रि शुरू होने पर मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं।
क्या है आगमन के वाहन का फल?
देवी के आगमन के वाहन से शुभ-अशुभ का विचार किया जाता है। माता दुर्गा जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार आगामी छह माह में होने वाली घटनाओं का आंकलन किया जाता है। इसके लिए भी देवी भागवत पुराण में एक श्लोक है-
गजे च जलदा देवी क्षत्र भंग स्तुरंगमे।
नौकायां सर्वसिद्धिस्या दोलायां मरणंधुवम्।।
अर्थात्- देवी जब हाथी पर सवार होकर आती है तो वर्षा ज्यादा होती है। घोड़े पर आती हैं तो पड़ोसी देशों से युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। देवी नौका पर आती हैं तो सभी के लिए सर्वसिद्धिदायक होता है और डोली पर आती हैं तो किसी महामारी से मृत्यु का भय बना रहता हैं।